Mansi savita

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लेखनी प्रतियोगिता -23-Apr-2023

घर के आंगन में जो खुशियां 
जिसमे बीता मेरा बचपन 
टूटे सपने थे सब अपने 
याद करू अपना पीहर
ख्वाब बुनो तो मिले हौसले
पापा कहते लाडो जीत तुम्हारी
मम्मी के भी अपने शासन पर 
कामकाज सिखाने की जिमीदारी है
गए पीहर छोड़ अपना आंगन
बांटी खुशियां सब अपने में
लगता हम से बात तो कर लो
हम माने अपने तुम क्यों  रूठे
निभाते जिमेदारी पर याद आता पीहर
जो मिलती सो के उठने के बाद
चाय थी वो पिता के राज में थी
छूट गया जब पीहर मेरा
खुद जग के अब चाय बनाओ
उसमे भी कभी कमी पाओ
जो खाने के लिए भागती मेरे मां
मुझे खा लो गरम खाना
अब तो सब खाने के बाद खाते खाना याद सा आता है
भाई चिड़ाता था मेरा कभी चुप बैठी नही
लड़ते झगड़ते बड़े हो गए यह तो 
हर बात धीमे सोच के बोलने पड़ती है
देते साथ मेरे हमसफर एक मीत बन
पर परिवार की कमी कभी न कभी खलती है
पीहर जाने की इजाजत ले 
ये बात कभी कभी बुरी लगती है
छूट गए वो दिन वो किस्से
पीहर और ससुराल के हो गए हिस्से
आज भी याद करती मैं अपना पीहर।।

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6 Comments

Abhinav ji

24-Apr-2023 09:46 AM

Very nice 👍

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madhura

23-Apr-2023 01:41 PM

very emotional poem great

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Abhilasha Deshpande

23-Apr-2023 01:23 PM

heart touching poem

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